University of Delhi announces establishment of Centre for Tribal Studies on the International Day of World’s Indigenous People
24 नवंबर 2022 को डीयू कुलपति
प्रो योगेश सिंह ने की थी जनजातीय केंद्र की घोषणा
अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस के अवसर पर, 9 अगस्त 2023 को, दिल्ली विश्वविद्यालय ने जनजातीय अध्ययन केंद्र (सीटीएस) की
स्थापना की घोषणा की है। यह केंद्र भारत-केंद्रित परिप्रेक्ष्य के माध्यम से
जनजातीय प्रथाओं, संस्कृति, भाषा, धर्म, अर्थव्यवस्था, समानताओं और प्रकृति के साथ संबंधों की विविधता को समझने के
लिए प्रतिबद्ध होगा।
जनजातीय अध्ययन केंद्र की गवर्निंग बॉडी का गठन करते
हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस के निदेशक प्रो श्री प्रकाश सिंह को
अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। उनके साथ प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, कैंपस ऑफ ओपन लर्निंग की निदेशक प्रो पायल मागो, विधि संकाय से प्रो के रत्नाबली और भूगोल विभाग से प्रो वी एस नेगी को सदस्य नियुक्त किया गया है। बाहरी विशेषज्ञों के
तौर पर दो प्रख्यात विद्वानों, आन्ध्र प्रदेश
केन्द्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो टीवी कट्टीमनी और हिमाचल प्रदेश
विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ ट्राइबल स्टडीज के निदेशक प्रो चंद्रमोहन परशीरा
से भी केंद्र को ज्ञानवर्धक जानकारी मिलेगी।
जनजातीय अध्ययन केंद्र की गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष
प्रो श्री प्रकाश सिंह ने जानकारी देते हुए कहा कि इस अध्ययन केंद्र की स्थापना
जनजातीय समुदायों के समग्र विकास और कल्याण के संदर्भ में वर्तमान के साथ-साथ
भविष्य की प्रगति के लिए प्रासंगिक समसामयिक मुद्दों को आगे बढ़ाने और समाधान करने
में एक परिवर्तनकारी कदम साबित होगी।
विश्वविद्यालय द्वारा एंथ्रोपोलॉजी विभाग के एचओडी
प्रो सौमेंद्र मोहन पटनायक को जनजातीय अध्ययन केंद्र का निदेशक और एंथ्रोपोलॉजी
विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अविटोली जी झिमो को संयुक्त निदेशक नियुक्त किया गया
है।
प्रो सिंह ने बताया कि इस केंद्र के कामकाज को गति
प्रदान करने के लिए एक अंतःविषय अनुसंधान समिति बनाई गई है। विधि संकाय से डॉ सीमा
सिंह और हंसराज कॉलेज के इतिहास विभाग से डॉ संतोष हसनू भी इसके सदस्य हैं।
जनजातीय मामलों में इनका ज्ञान और विशेषज्ञता जनजातीय अध्ययन केंद्र (सीटीएस) को आगे
बढ़ाने में सहायक होगी। प्रो सिंह ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत, मध्य भारत, दक्षिण भारत और
द्वीपीय क्षेत्रों आदि की क्षेत्रीय विविधताओं पर उचित विचार के साथ-साथ इस केंद्र
का दृष्टिकोण अखिल भारतीय होगा। उन्होने बताया कि वर्तमान में जनजातीय अध्ययन
केंद्र दिल्ली विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी विभाग से कार्य करेगा।
प्रो सिंह ने बताया कि जनजातीय अध्ययन केंद्र
(सीटीएस) की स्थापना सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में कई जनजातीय नेताओं की भूमिका और
योगदान को उजागर करने का प्रयास करेगी तथा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई
गुमनाम जनजातीय नेताओं के प्रयासों को भी प्रकाश में लाएगी। यह जनजातीय अध्ययन
केंद्र (सीटीएस) अपने अनुसंधानात्मक प्रयासों के द्वारा भारतीय जनजातियों की
विभिन्न लोक परंपराओं और उनके स्वदेशी ज्ञान का अध्ययन और दस्तावेजीकरण करेगा तथा
इसके साथ ही जनता के लिए सामान्य रूप से और शिक्षाविदों तथा विद्यार्थियों के बीच
विशेष रूप से इस जानकारी का प्रसार करने की दिशा में भी काम करेगा।
प्रो सिंह ने बताया कि विमुक्त, घुमंतू जनजातियों और विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों
(पीवीटीजीस) की जरूरतों के बीच अंतर को पाटने में भी यह केंद्र महत्वपूर्ण भूमिका
निभाएगा। यह केंद्र संरक्षण, विकास, वन और विशेष स्वास्थ्य आवश्यकताओं के विशेष संदर्भ में
सार्वजनिक नीति को व्यावहारिक शैक्षणिक प्रोत्साहन भी प्रदान करेगा। उन्होने कहा
कि जनजातीय अध्ययन केंद्र (सीटीएस) उन जनजातियों को सशक्त बनाने के दिल्ली
विश्वविद्यालय के दृष्टिकोण का एक प्रमाण है, जो भारत की कुल
आबादी का आठ प्रतिशत से अधिक हैं।