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यमुना जी ने अपनी जगह खोज ली है: डॉक्टर राजेंद्र सिंह

दिल्ली दो भू सांस्कृतिक क्षेत्रों का राज्य है। पहला इंद्रप्रस्थ जो यमुना की खादर कहलाता है और दूसरा अरावली का क्षेत्र खांडवप्रस्थ कहलाता है। दिल्ली की अरावली क्षेत्र की तरफ से आने वाले वर्षा जल के नाले सीधे यमुना में मिलते थे।

अब उन्हीं नालों को दिल्ली का मैला ढोने वाली माल गाड़ी बनाने के लिए काम में लिया जा रहा हां। वैसे तो 1968 में दिल्ली का मास्टर प्लान बना था,जिसमे दिल्ली को बाढ़ मुक्त बनाने का प्रावधान था। 2018 में एक विस्तार से मास्टर प्लान बना था। जब 2006 में पुराने 1968 के मास्टर ड्रेनेज प्लान का विस्तार से अध्ययन हुआ तो पता चला कि, दिल्ली में तीन बड़े जल क्षेत्र है, उन में 201 छोटे ड्रेनेज है। यह छोटे ड्रेनेज बारामुला, साबी (आज का नजफगढ़ नाला  और तीसरी सहद्रा नाला यह तीनों बड़ी ड्रेन पहले केवल वर्षा जल को यमुना में मिलाती थी। अब यह तीनों ड्रेनेज भी गंदे नालों को वर्षा जल में मिलाकर, मलमूत्र बहने वाली ड्रेनेज बन है। इस बदलाव से जल के अविरल प्रवाह में बाधाएं बन गई है,जिसके कारण अब दिल्ली यमुना के जल से डूबने लगी है।

2006 के मास्टर प्लान के आधार पर जो अध्ययन हुआ था, वह बहुत ही अच्छा था। इसमें हर छोटी छोटी ड्रेनेज का अध्ययन किया गया था। लेकिन इस पर काम करने वाली 9 एजेंसियां  हैं। उसमे से 5  एजेंसियां   नगरपालिका व नगर निगम कॉरपोरेशन और 4 में से दो दिल्ली व 2 भारत सरकार की है। दिल्ली सरकार का बाढ़ नियंत्रण व जल बोर्ड विभाग ,भारत सरकार का सीपीडब्लूडी व जल शक्ति मंत्रालय यह सभी अपने अपने अलग तरीके से काम करते है। यह सभी स्वंभू है। यदि इन सभी के कामों को एक मिला दिया जाए और मिलकर काम करते तो दिल्ली पानीदार बनी रहती ,जिससे दिल्ली बाढ़ में नहीं डूबती। आज दिल्ली  बेपानी है और भूजल के भंडार खाली हो रहे है। गंगा जैसी दूसरी नदियों से पानी लाकर , यमुना की दिल्ली को जिंदा रखे हुए हैं।

उक्त सभी एजेंसियां के अलग-अलग तरीके छोड़कर, एक ही तरीके से, एक होकर दिल्ली को बाढ़ -  सुखाड़ मुक्त बनाने का काम  करना चाहिए। दिल्ली में बाढ़ से मुक्ति की युक्ति जोरों से 1976 से ही खोजी जा रही थी। लेकिन बाढ़ का प्रभाव बहुत भयानक बनता जा रहा है। सरकारें अब अपने को बचाने के लिए बोल रही है कि, जलवायु परिवर्तन का संकट का नाम देकर, अपने को बचाने की दुहाई दे रही है। लेकिन यह जलवायु परिवर्तन का एक मात्र प्रभाव नहीं है, यह तो आधुनिक विकास के लिए बाढ़ -  सुखाड़ मुक्ति की युक्ति "भारतीय विद्या" के विस्थापन और नए सीमेंट कांक्रीट के खड़े जंगलों का निर्माण करने से होने वाले बिगाड़ का विनाशक रूप है। 

2021 और 2023 की दिल्ली में बाढ़ सामान्य वर्षा आई है। 2023 में  बाढ़ का भयानक स्वरूप देखने को मिला है। यह बाढ़ लालची विकास की ही देन है। इसने केवल दिल्ली में ही नहीं बल्कि हिमाचल, उत्तराखंड, हिमालय में भी बहुत विनाश किया है। अर्थात यह मानव निर्मित बाढ़ है, जो विकास का विनाश है। यह प्रकृति की देन नहीं है।

अभी जो सरकार को करना चाहिए था, वह नही किया। इस विनाश में बहुत हद तक विकास के लिए काम करने वाली एजेंसियां भी जिम्मेदार है। यह सब एक-दूसरे पर आरोप लगाकर, अपने आपको बचाती रहती है।  दिल्ली की प्रलय प्राकृतिक नही,मानव निर्मित है। यह कोई बदल फटने से नहीं हुआ। मुझे लगता है कि, यह सरकारों की बड़ी लाफरवाही है। लापरवाही करने वाले इंजिनियर, नेताओं से बात करने पर ज्ञात हुआ, कि उन्होने हरियाणा के बड़े नहरी और सिंचाई तन्त्र ने यमुना की बाढ़ का पानी क्यों नहीं छोड़ा; जवाब मिला कि,बाढ़ के पानी के साथ पेड़ - पौधे, घास ,मिट्टी और पत्थर बहुत बडी मात्रा में प्रवाहित होकर आ रहा था। यदि हम इस नहरी तन्त्र को बाढ़ कम करने के लिए खोलते तो हमारा सिंचाई में पेड़ पौधे, पत्थर, मिट्टी फस जाते। यदि अभी भी सरकारें सचेत हो तो हमारे पास मास्टर प्लान है, स्वेज प्लान , ड्रेनेज प्लान है, इनको ईमानदारी व प्रतिवाध्यता से पालन किया जाता तो दिल्ली पानीदार बनकर, तो दिल्ली पानीदार बनकर बाढ़ सुखाड़ मुक्त होती। 

दिल्ली में सिस्टम को ठीक करके ,जिम्मेदारी पूर्ण बनाया जाना चाहिए। नही तो आने वाले दिन बहुत भयानक दिख रहे है। हम अपनी गलती को स्वीकार करके, सुधार करने के लिए तैयार हों। 

दिल्ली राजधानी को अपनी ही जगह रहना है, तो हमे हिमालय की हरियाली और नदियों की अविरलता को सैद्धांतिक रूप में प्राथमिक काम मानकर, संरक्षण देना जरूरी है। भारत सरकार से गंगा -  यमुना को 11 अक्टूबर 2018 को मिले पर्यावरणीय अधिकार की पालना की जानी चाहिए। हिमालय पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण सिर्फ हिमालय के लिए खतरनाक नहीं, बल्कि दिल्ली के लिए भी बहुत खतरनाक है। यह बात दिल्ली की बाढ़ ने साफ तौर पर बता दिया है। इसलिए सरकार को किसी न किसी को जिम्मेदार बनाना होगा, नही तो बाढ़ की मार दिल्ली ऐसे ही खाती रहेंगी, अभी भी वक्त है कि, 2023 की बाढ़ से सीख लेकर, कुछ करने में जुट जाएं।

दिल्ली में इस समय बाढ़ का पानी भरा हुआ है। जिसके कारण काफी नुकसान हो रहा है। बाढ़ के पानी को कम करने के लिए ओखला के पास यमुना नदी से एक बड़ी नहर निकलती है, जिसे गुड़गांवा केनाल कहा जाता है। इसमें इस समय पानी नहीं है, यदि इस केनाल मे यमुना का पानी तुरंत प्रभाव से छोड़ा जाये तो, कुछ  दिल्ली का पानी कम होगा। यह केनाल हरियाणा होते हुए राजस्थान के भरतपुर जिले मे चली जाती है। जिस एरिया से यह केनाल जाती है, वहां हल्की बारिश है। लिहाजा यहां नहर के पानी से कोई नुक्सान होने का अंदेशा नहीं है। इसके अलावा गुड़गांवा केनाल की एक नहर सोहना के पास बने रोजका मेव औद्योगिक क्षेत्र के पास से निकलती हुई, कोटला झील  नूंह जिले मे जाती है। यह झील भी पानी के बिना खाली है। इस झील मे भी यह पानी लाया जा सकता है। कोटला झील भरने के बाद पानी अपने आप उजीना झील मे चला जाता है। उजीना झील भरने पर फालतू पानी उजीना डायवर्सन कैनाल मे अपने आप चला जाता है। यह उजीना डायवर्सन कैनाल अपने पानी को होडल से काफी दूर पूर्व दिशा मे गोनची केनाल मे डाल देती है। फिर यह पानी गौनची केनाल से होते हुए आगे फिर यमुना मे चला जाता है। यहां तक पानी को पहुंचने मे काफी समय लगता है। इसलिए मुझे लगता है कि, यदि मेरे इस सुझाव पर काम किया जावे तो दिल्ली की बाढ़ का पानी कम किया जा सकता है। दिल्ली मे बाढ़ से जमा हुए पानी को यमुना मे जाने का रास्ता मिल जायेगा।

दिल्ली की बाढ़ के असर को कम करने के तरीकों पर सोचा नहीं जा रहा है! यदि सोचा जा रहा होगा तो हमें कुछ काम दिख नहीं रहा। हम चाहते हैं कि, दिल्ली में जो बाढ़ की मार हुई है, उससे बचा जाऐ । दिल्ली में अभी भी जो पानी भरा है, उसका जल स्तर काफी ऊंचा है। उस पानी की निकासी के लिए ओखला व सभी नहरों को खोल देना चाहिए, जिससे वह पानी झीलों में पहुंचाया जा सकता है। 

अभी जो पानी ऊपर से आ रहा है , उसे हरियाणा के कैनाल सिस्टम में डालने का सोचना चाहिए। कैनाल सिस्टम में पानी डालने से दिल्ली में पानी की मार कम होगी।  हरियाणा में ऊपर कई कैनाल सिस्टम है। यदि उसमे पहले से ही पानी को डाला जाता तो दिल्ली में यह बाढ़ इतनी भयानक नहीं होती, लेकिन हरियाणा सरकार ने वह कोशिश नहीं की। यदि यह कोशिश करती तो जैसी पिछली सालों में बहुत अच्छी कोशिश करके मानसी की झील में बाढ़ के पानी को डाला था।  इस बार वो काम क्यों नही किया गया। अभी भी जो पानी ऊपर से आ रहा है, दिल्ली में कम से कम पहुंचे,इसके लिए हरियाणा, उत्तरप्रदेश में जितने भी कैनाल सिस्टम है, उसमे यमुना के जल प्रवाह को नहरों में बांट दिया जाए। मेरे गांव डोला बागपत(उत्तर प्रदेश)की  यमुना नहर आज भी सूखी पड़ी है और वहां सिंचाई के पानी की जरूरत है। दिल्ली की बाढ़ का पानी दिल्ली में आने से पहले ही नहरों में बांट दिया जाता तो, इतना पानी दिल्ली में पहुंचा है,उसका आधा ही पहुंचता। दिल्ली के नीचे भी कैनाल सिस्टम है, उसको ठीक करके ओखला के पास निकलनी वाली नहर से भपानी को खाली किया जा सकता है, क्योंकि नीचे के क्षेत्रों में बारिश बहुत कम है। यहां के लोग चाहेंगे कि, उनके लिए यह पानी मिले। उनके पास पानी के बैंक बड़ी - बड़ी झील, ताल, पोखर खाली पड़ी है।

भारत सरकार और राज्य सरकार को मिलकर जल्दी से दिल्ली को पानी से बचाने के रास्ते खोजने चाहिए।  राजधानी को दलगत राजनीति की खींचातान से बचकर, दिल्ली को बाढ़ से बचाना चाहिए।दिल्ली को बचाने के लिए हम सभी को एक होकर जुटना चाहिए। इस काम में हरियाणा, दिल्ली , राजस्थान और उत्तर प्रदेश सभी संबंधित सरकार के सिंचाई विभाग व कैनाल विभाग आदि संबंधित विभागोंको समझना होगा कि, इस  बाढ़ के पानी का उपयोग सुखाड़़ मिटाने के लिए किया जा सकता है।

देश में बढ़ रहे बाढ़-सुखाड़ की मुक्ति की युक्ति यही है कि, जहां बाढ़ का अधिक पानी है, उस पानी को सुखाड़ मिटाने के लिए उपयोग कर लिया जाए। बहुत साफ शब्दों में समझाना चाहता हूं कि, यह काम बड़े बांध बनाने और नदियों को जोड़ने से संभव नहीं है। हमे जल के मौजूद तंत्रों को दुरुस्त करके, प्रभावी तौर पर करने की जरूरत है, तब ही हम बाढ़-सुखाड़ से बच सकेंगे। हमे इस बात को भी समझना होगा कि, दिल्ली में इस बार की बाढ़ पानी से तो आयी ही है, लेकिन पानी से ज्यादा इस बाढ़ को लाने का काम हिमालय की सुरंगों, सड़को और मग  ने भी किया है।  

आओ इस विकास के विनाश को समझे और अपनी नदियों की प्राकृतिक सीमाओं को जाने । नदियों पर अतिक्रमण रोकने के लिए,नदी के प्रवाह क्षेत्र ( ब्लू जोन),बाढ़ क्षेत्र ( ग्रीन जोन),उच्चतम बाढ़ क्षेत्र ( रेड जोन) की पहचान ,सीमांकन, चिन्हीकरण और रिकॉर्ड में मानचित्र के अनुरूप राजपत्रितकरण करें। शहरों का मलमूत्र और उद्योग के प्रदूषित जल और वर्षा जल के प्रवाह के जल को अलग अलग करें। यमुना जी में हिमालय से लेकर ,इलाहाबाद के बीच कहीं भी खनन करने की स्वाकृति न दें, जहां पर नदी में खनन हो रहा है, उसको रोक दें। ऐसा करने से हमारी नदी का स्वस्थ ठीक होगा और दिल्ली बाढ़ मुक्त बनेगी,फिर यमुना जी को अपनी जमीन ढूंढ़नी नहीं पड़ेगी। यमुना जी जहां बहती है ,वहां आनंदित होकर चलेंगी। फिर  किसी को भी बाढ़ से प्रभावित होकर विस्थापित नही होना पड़ेगा। यमुना जी शुद्ध सदनीरा बनकर बहेगी।


डॉक्टर राजेंद्र सिंह विश्व में जलपुरुष के नाम से विख्यात हैं। विश्व बाढ़ सुखाड़ आयोग के अध्यक्ष के रूप में उनका कार्य अब राजस्थान के छोटे गांव भीकमपुरा से शुरू हो कर पूरी दुनिया में फैल गया है, जिसमें उन्होंने कई नदियां, झीलों और हजारों तालाबों को पुनर्जीवित किया और करवाने में मार्गदर्शन भी किया है। जल से जुड़े उच्चतम पुरस्कार स्टॉकहोम वाटर प्राइज (इस क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार) और रेमन मैगसेसे पुरस्कार से भी सम्मानित हैं। इन्हें संसद के दोनों सदनों को संबोधित करने के लिए भी बुलाया गया था।